कनकभवन की अष्टयाम सेवा पद्धति

श्री जानकी वल्लभो विजयते

मंगल बल्लभ सिंगार अरु राज-भोग उत्थान।

संध्या, ब्यारू सेवनं, शैन लौं द्वै विधि जान।।

मंगल आरती (भीतर)

पट खोल कर मंदिर में प्रवेश करके श्रीचरण चांप कर जगाना। पय्र्यंक प्रसाद हटाना। शय्या से उठाकर सिंहासन पर पधराना। धूप, दीप, खोयेदार मिठाई, अथवा मक्खन-मिश्री अथवा फल अर्पण करना। जल रखना, मन्दिर की कोठरी मंे छिप जाना। 5 मिनट बाद आकर आचमन कराना, साफी फेरना। दो बत्ती की आरती।

बल्लभ आरती (भीतर)

शौचादि क्रिया की भावना नेत्र बंद करके करना। आचमन, हाथ पैर साफी पौंछना, फिर आचमन के अनंतर प्रभाती कराते समय तीन बार आचमन कराकर साफी से पौंछना। धूप दीप फल मेवा अर्पण करना, जल रखना। मन्दिर की कोठरी में छिप जाना। 5 मिनट बाद आकर आचमन कराना। साफी फेरना, दो बत्ती की आरती।

शृंगार आरती (खुला परदा)

भीगी हुई साफी से सर्वांग पोंछना, देहली और संपुट में स्वास्तिक चिन्ह बनाना, संपुट में सालिग्राम जी का स्नान, चंदन-पुष्प-तुलसी अर्पण। श्री हनुमान जी का स्नान, देहली, सिंहासन पूजना तिलक स्वरूप, पोशाक पहनाना दिन के अनुसार। शृंगार करना, आभूषण सजाना। माला पहनाना। धूप दीप बालभोग अर्पण करना। जल गिलास में रखना। कोठरी में छिप जाना। 5 मिनट बाद आकर आचमन कराना, साफी फेरना, किरीट चंद्रिका, धनुष-बाण-पुष्प धारण कराना। पान, दर्पण दिखाना। इतना कार्य पर्दे के अन्दर करना। इसके बाद पर्दा हटाकर जाड़े में दर्शवर्तिका, गरमी-बरसात में पुष्प तुलसी की आरती। पय्र्यक प्रसाद, मंगल और वल्लभ प्रसाद तथा बालभोग बांटना।

राजभोग आरती (खुला परदा)

पीढ़ा थाल धरने के लिए रखना, किरीट चंद्रिका धनुष बाण पुष्प हटा देना। चार गिलास में जल रखना। धूप दीप राजभोग थाल अर्पण करना, आचमन कराकर सब वस्तुओं का पांच-पांच गफ्फा बनाकर निवेदन करना। बाहर निकल आनाा, 15 मिनट बाद जल चलाने भीतर जाना। बाहर निकल आना, 15 मिनट बाद आचमन, पान परिष्कार कराना। थाल भंडार वापस देना। इसके बाद पर्दा हटाकर केवल किरीट चंद्रिका धारण कराकर पुष्पारती कराना, पान बांटना। फिर किरीट चंद्रिका हटाकर वस्त्र ओढ़ाकर शयन। पट बन्द करके बाहर निकल जाना।

उत्थापन आरती (भीतर)

आवरण हटाकर आचमन कराना, साफी फेरना। वस्त्र आदि संवारना। धूप दीप शर्बत अथवा नमकीन समोसा आदि अर्पण करना, जल रखना। कोठरी में छिप जाना। 5 मिनट बाद आचमन साफी किरीट चंद्रिका धनुष-बाण-पुष्प धारण, पान दर्पण दिखाकर पुष्प-तुलसी की आरती करके परदा खोल देना।

सन्ध्या आरती (खुला परदा)

धूप दीप खोयेदार मिठाई अर्पण अथवा अन्य कोई सामयिक पदार्थ अर्पण, जल रखना। कोठरी में छिप जाना। 5 मिनट बाद आचमन कराकर साफी फेरना, इतर-पान निवेदन करना। जाड़े में दशवर्तिका, गरमी-बरसात में पुष्प-तुलसी की आरती करना। प्रेमियों को योग्यातुनासार हार और पान, इतर देना।

ब्यारू आरती (खुला परदा)

थाल धरने के लिए पीढ़ा रखना, किरीट चंद्रिका धनुष-बाण-पुष्प हटा देना। चार गिलास में जल रखना। धूप दीप ब्यारू थाल अर्पण करना। आचमन कराकर पांच गफ्फा निवेदन करना, दूध-पूरी अर्पण। बाहर निकल जाना। 15 मिनट बाद आकर जल चलाकर फिर बाहर निकल जाना। 15 मिनट बाद आचमन, थाल वापस, पान परिष्कार। इसके बाद पुष्प-तुलसी की आरती करके प्रसाद बांटना।

शयन आरती (भीतर)

किरीट, चंद्रिका, धनुषबाण-पुष्प हटाकर सब पोशाक उतारना। धोती और हल्की साड़ी पहनाना। सिंहासन से उठाकर पय्र्यंक पर शयन कराकर चादर ओढ़ाना। धूप दीप कलाकन्द और गिलास में जल पय्र्यंक के पास रखना, पान बीड़े रखना। दो बत्ती की आरती पट बन्द करके बाहर निकल जाना।

नोट-
(1) मन्दिर में प्रवेश करके झाडू लगाकर हाथ धोकर साफी से नाक और मुंह बांध लेना चाहिए।
(2) प्रत्येक कृत्य में श्री युगल-मंत्रराज का अनुसंधान करते रहना चाहिए।
(3) काम-क्रोध की दशा में मन्दिर के बाहर निकल कर स्नान करके मन्त्र जाप कर फिर सेवा में जाना चाहिए।
(4) धनु की संक्रान्ति में खिचड़ी और मकर में तिल के लड्डू बल्लभ भोग समझना चाहिए।
(5) जाड़े में 6 बजे, गरमी-बरसात में 5 बजे मन्दिर-पट खुले। तीन घंटे के बाद शृंगार आरती होनी चाहिए।