कनक भवन की सखियाँ

श्री अयोध्या धाम में भक्तजन जब कनकभवन में दर्शनार्थ आते हैं, तो अधिकांश भक्तजन युगल सरकार के दर्शन कर कृतार्थ हो जाते हैं। किन्तु उन भक्तों में जो अत्यन्त अन्तरंग प्रेमी-सखी-भावना भावित हृदय होते हैं वे कनकभवन के ऊपर बने गुप्त शयनकुन्ज का भी दर्शन करने की इच्छा करते हैं परन्तु यह शयनालय सबको नहीं दिखाया जाता। किन्हीं कारणों से अब यह आम जनता के दर्शनों के लिए बन्द कर दिया गया है।

भावना से-इस शयनकुन्ज में नित्य प्रति रात्रि में पुजारी भगवान को शयन कराते हैं। दिव्य वस्त्रालंकारों से सुसज्जित मध्य में सुन्दर शय्या बिछी है। उसमें बीच के कुन्ज मंे शृंगार सामग्रियाँ रक्खी हैं। उसी कुुन्ज में शय्या पर भगवान शयन करते हैं। इस कुन्ज के चारों ओर आठ सखियों के कुंज हैं। श्री चारुशीलाजी, श्री क्षेमाजी, श्री हेमाजी, श्री वरारोहाजी, श्री लक्ष्मण जी, श्री सुलोचना जी, श्री पद्मगंधाजी, श्री सुभगाजी-इन आठ सखियों के प्राचीन चित्र बने हुए हैं। उन चित्रों की शोभा देखने ही योग्य है। अपनी अपनी सेवा में सभी सखियाँ तत्पर दिखाई देती हैं। सभी सखियाँ की भिन्न-भिन्न सेवाएँ हैं। उस सेवा के रहस्य सभी चित्रों के नीचे दोहों में लिखे हुए हैं। वे 8 दोहे इस प्रकार हैं-

श्री चारूशीला जी
प्रथम चारुशीला सुभग, गान कला सुप्रबीन।
युगल केलि रचना रसिक, रास रहिस रस लीन।।1।।

अर्थात्-श्री चारुशीलजी, युगल सरकार की क्रीड़ा के लिये प्रबन्ध करती हैं। आप गान-कला की आचार्य हैं। अखिल ब्रह्माण्ड के देवी-देवता, जो गानविद्या-प्रिय हैं, गन्धर्व आदि उन सबकी अधिष्ठात्री देवी आप हैं। सृष्टि के वाणी आदि कार्य सब आपके आधीन हैं। आप युगल सरकार के ‘विधान-रचना’ विभाग की प्रधानमंत्री हैं।

श्री सुभगा जी
सुभगा  सुभग  शिरोमणि,  सेज  सुहाई  सेव।
सियवल्लभ सुख सुरति, रस, सकल जान सो भेव।।2।।

अर्थात्-ये युगल सरकार के वस्त्रादि की सेवा करती हैं तथ अखिल ब्रह्माण्ड में वस्त्रों का प्रबन्ध, स्वच्छता, आरोग्य आदि आपके आधीन हैं। आजकल के हिसाब से आपको युगल सरकार के आरोग्य-विभाग की प्रधानमंत्री कह सकते हैं।

श्री वरारोह जी
सखी  वरारोह  युगल  भोजन  हरषि  जमाय।
प्राण  प्राणनी  प्राणपति,  राखति  प्राण  लगाय।।3।।

अर्थात्-ये सरकार की भोजनादि का सब प्रबन्ध करती हैं। अखिल ब्रह्माण्ड में आप विश्व भरणपोषण की अधिष्ठात्री हैं। अन्नपूर्णां अष्टसिद्धि नवोनिधि आदि आपके आधीन है। आपको प्रभु का ‘गृहसचिव’ कहना चाहिये।

श्री पद्मगंधा जी
सखी  पद्मगंधा  सुभव  भूषण  सेवित  अंग।
सदा  विभूषित  आप  तन,  युगल  माधुरी  रंग।।4।।

अर्थात्-श्री पद्मगंधा जी को भूषण आदि की सेवा मिली है। समस्त संसार का धन, कोष, कुबेर आदि आपके आधीन हैं। आप प्रभु की ”अर्थसचिव“ हैं।

श्री सुलोचना जी
अलि  सुलोचना  चितवित,  अंजन  तिलक  संसार।
अंगराय  सिय  लाल  कर,  जोवर  लखि  शृंगार।।5।।

अर्थात्-श्री सुलोचना जी प्रभु का अंजन, तिलक सब शृंगार सुचारू रूप से सजाती हैं। चंदनादि अंगराग की सेवा करती हैं। इधर वे ही विश्व की शंृगार सामग्रियों की प्रबन्धकत्र्री हैं। यह प्रभु की ‘प्रबन्धमंत्री’ कही जाती हैं।

श्री हेमा जी
हेमा  करि  बीरी  सादा,  हंसि  दम्पति  सुख  देत।
सम्पति  राग  सुराग  की,  बड़भागिनी  उर  हेत।।6।।

अर्थात्-कनकभवन में ताम्बूल की सेवा तथा अन्तरंग सेवाएँ भी आपके अधीन हैं। इधर जगत में आप शंृगाररस की उपासिकाओं की रक्षा भी करती हैं। महिलाओं के सौभाग्य की चाबी आपके ही आधीन हैं। आप प्रभु की ”उत्सव-सचिव“ हैं।

श्री क्षेमा जी
क्षेमा  समस  स्नान  सम,  वसन  विचित्र  बनाय।
सुरुचि सुहावनि सुखद ऋतु, पिय प्यारी पहिराय।।7।।

अर्थात्-श्री कनकभवन सरकार को स्नान कराना, ऋतु के अनुसार जल-विहार, उबटन आदि की सेवा करती हैं। इधर ब्रह्माण्ड का समस्त जलतत्व आपके आधीन रहता है। इन्द्र-वरुण आपके आधीन हैं। आप प्रभु की ”जल-सचिव“ हैं।

श्री लक्ष्मणा जी
लक्ष्मण  मन  लक्ष  गुण  पुष्प  विभूषण  साज।
विहंसि बिहंसि पहिरावतीं, सियवल्लभ महाराज।।8।।

अर्थात्-‘कनकभवन’ में नित्य धाम में यह प्रिया प्रियतम की फूलमाला पुष्पभूषण की सेवा करती हैं और जगत् में समस्त वन-उपवन, पशु, पक्षी आपकी रक्षा में रहते हैं। सूर्य चन्द्र आपके आधीन हैं। आप प्रभु की ”वनस्पति एवं कला-सचिव“ कही गयी हैं।

इस प्रकार इन आठों सखियों की जो महिमा जानकर इनकी उपासना करता है वह समस्त वांछित सिद्धियों को प्राप्त करता है।

श्री सीताजी की सखियां

ऊपर ये आठों सखियां जो कही गई हैं, अखिल ब्रह्माण्डनायक प्रभु श्रीराम जी की सखियाँ कही जाती हैं। इनके अतिरिक्त आठ सखियाँ और हैं जो श्री सीताजी की अष्टसखी कही जाती हैं उनमें श्री चन्द्र कला जी, श्री प्रसादजी, श्री विमलाजी, मदन कला जी, श्री विश्व मोहिनी, श्री उर्मिला, श्री चम्पाकला, श्री रूपकला जी हैं। इन श्री सीताजी की सखियों को अत्यन्त अन्तरंग कहा जाता है। ये श्री किशोरी जी की अंगजा हैं। ये प्रिया प्रियतम की सख्यता में लवलीन रहती हैं। आनन्द-विभोर की लीलाओं में, मान आदि में तथा उत्सवों में निमग्न रहते हुए दम्पति को विविध प्रकार से सुख प्रदान करती हैं।

इन उपरोक्त 16 सखियों का श्री कृपानिवासजी की वाणी में वर्णन है। ऊपर के आठों दोहे उसी वाणी से लिखे गये हैं।